Banned Movies in India – फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ को लेकर चल रही कंट्रोवर्सी अब भी जारी है। सेंसर बोर्ड और फिल्म मेकर्स के बीच फिल्म के टाइटल को बदलने और कुछ हिस्से हटाए जाने को लेकर विवाद है। वैसे, बॉलीवुड में यह पहली बार नहीं है, जब किसी फिल्म को लेकर सेंसर और प्रोड्सूसर में ठनी हो। इससे पहले भी कई फिल्मों को लेकर विवाद होते रहे हैं। कई फिल्में तो विवादों में इस कदर फंसी कि वो आज तक रिलीज ही नहीं हो पाईं। हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसी ही विवादास्पद फिल्मों के बारे में जिन पर न सिर्फ सेंसर की कैंची चली बल्कि इन्हें बैन ही कर दिया गया।
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Banned Movies in India
फायर (1996)
डायरेक्टर दीपा मेहता की फिल्म ‘फायर’ में हिंदू फैमिली की दो सिस्टर-इन-लॉ को लेस्बियन बताया गया है। फिल्म का शिवसेना समेत कई हिंदू संगठनों ने काफी विरोध किया था। यहां तक कि फिल्म की डायरेक्टर दीपा मेहता और एक्ट्रेस शबाना आजमी व नंदिता दास को जान से मारने की धमकी तक मिली थी। काफी विवाद के बाद आखिरकार सेंसर ने इसे बैन कर दिया।
– कामसूत्र-अ टेल ऑफ लव (1996)
डायरेक्टर मीरा नायर की यह फिल्म ‘कामसूत्र’ पर बेस्ड थी। फिल्म में काफी हद तक खुलापन था। अनइथिकल होने के साथ ही इस फिल्म में 16वीं सदी के चार प्रेमियों की कहानी बताई गई थी। फ़िल्म क्रिटिक्स को तो ये मूवी बहुत पसंद आई लेकिन सेंसर बोर्ड को नहीं। कई विवादों के बाद सेंसर ने इसे बैन कर दिया था।
– ब्लैक फ्राइडे (2004)
राइटर एस हुसैन ज़ैदी की किताब पर बनी फिल्म ‘ब्लैक फ्राइडे’ अनुराग कश्यप की दूसरी फ़िल्म थी, जिसे सेंसर बोर्ड ने बैन किया था। यह फ़िल्म 1993 में हुए मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित थी। उस समय बम ब्लास्ट का केस कोर्ट में चल रहा था इसीलिए हाई कोर्ट ने इस फ़िल्म की रिलीज़ पर स्टे लगा दिया था।
– वाटर (2005)
दीपा मेहता की यह दूसरी फ़िल्म थी, जो विवादों में फंसी। एक इंडियन विडो (विधवा) को सोसायटी में कैसे-कैसे हालातों से गुज़रना पड़ता है, यही फ़िल्म की कहानी है। वाराणसी के एक आश्रम में शूट हुई इस फ़िल्म को अनुराग कश्यप ने लिखा था। सेंसर बोर्ड को ये सब्जेक्ट समझ नहीं आया। इसके अलावा कई संगठनों ने इस फ़िल्म का विरोध किया। आखिरकार सेंसर को यह फिल्म भी बैन करनी पड़ी।
– परजानिया (2005)
यह फिल्म गुजरात दंगों पर बेस्ड थी। कुछ लोगों ने इसे सराहा तो कई ने इसे क्रिटिसाइज भी किया। फ़िल्म की कहानी में अज़हर नाम का लड़का 2002 दंगों के समय गायब हो जाता है। वैसे तो परज़ानिया को अवॉर्ड मिला। लेकिन गुजरात दंगे जैसे सेंसेटिव सब्जेक्टर कीवजह से इस फ़िल्म को गुजरात में बैन कर दिया गया था।
– पांच (2003)
अनुराग कश्यप और सेंसर बोर्ड की दुश्मनी मानों काफी पुरानी है। उनकी फ़िल्म ‘पांच’ जोशी अभ्यंकर के सीरियल मर्डर (1997) पर बेस्ड थी। सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म को इसलिए पास नहीं किया क्योंकि इसमें हिंसा, अश्लील लैंग्वेज और ड्रग्स की लत को दिखाया गया था।
– सिंस (2005)
यह फ़िल्म केरल के एक पादरी पर बेस्ड थी, जिसे एक औरत से प्यार हो जाता है। दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन जाते हैं। कैसे ये पादरी, समाज और धर्म की मर्यादाओं के बावजूद अपने प्यार को कायम रखता है, यही फ़िल्म की कहानी है। कैथलिक लोगों को यह फ़िल्म पसंद नहीं आई थी क्योंकि इसमें कैथलिक धर्म को अनैतिक ढंग से दिखाया गया था। सेंसर बोर्ड को इस फ़िल्म के न्यूड सीन से परेशानी थी इसीलिए उसने इसे बैन कर दिया।
– द पिंक मिरर (2003)
श्रीधर रंगायन की फिल्म ‘द पिंक मिरर’ सेंसर बोर्ड को इसलिए पसंद नहीं आई क्योंकि इसमें समलैंगिक लोगों (ट्रांससेक्शुअल और गे टीनेजर) के हितों की बात बताई गई है। दुनिया के दूसरे फेस्टिवल्स में इस फ़िल्म को सराहा गया था लेकिन भारत में सेंसर बोर्ड ने इसे बैन कर दिया था।
– फिराक (2008)
फ़िराक दूसरी फ़िल्म है, जो गुजरात दंगों पर बनी। प्रोड्यूसर्स के मुताबिक यह फ़िल्म सच्ची घटनाओं पर बेस्ड थी, जो गुजरात दंगों के समय हुई थीं। एक्ट्रेस नंदिता दास को इस फ़िल्म के लिए कई संगठनों से काफ़ी विरोध झेलना पड़ा था। आखिरकार सेंसर बोर्ड ने इसे बैन कर दिया। हालांकि कुछ समय बाद जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई, तब इसे आलोचकों और दर्शकों से काफ़ी तारीफ मिली थी।
– उर्फ प्रोफेसर (2000)
डायरेक्टर पंकज आडवाणी की फिल्म ‘उर्फ प्रोफेसर’ भी सेंसर बोर्ड के के शिकंजे से बच नहीं पाई थी। इस फिल्म में मनोज पाहवा, अंतरा माली और शरमन जोशी जैसे एक्टर थे। हालांकि वल्गर सीन और खराब लैंग्वेज के कारण सेंसर बोर्ड ने इसे पास नहीं किया।
– इंशाल्लाह, फुटबॉल (2010)
दरअसल यह एक डाक्यूमेंट्री है, जो एक कश्मीरी लड़के पर बनी है। यह लड़का विदेश जाकर फुटबॉल खेलना चाहता है लेकिन उसे देश से बाहर जाने की परमिशन नहीं मिलती क्योंकि उसका पिता टेरेरिस्ट एक्टिविटीज से जुड़ा हुआ है। फ़िल्म का परपज था कि आतंकवाद के चलते, कश्मीरी लोगों की परेशानियां दुनिया के सामने लाएं लेकिन कश्मीर का मसला हमेशा से ही सेंसेटिव रहा है। इसी वजह से सेंसर बोर्ड ने इसे रिलीज़ ही नहीं होने दिया।
डेज्ड इन दून (2010)
दून स्कूल देश के फेमस स्कूलों में से एक है। इस फ़िल्म की कहानी एक लड़के की ज़िन्दगी पर बेस्ड है, जो दून स्कूल में पढ़ता है और फिर ज़िन्दगी उसे एक अलग ही सफ़र पर ले जाती है। दून स्कूल मैनेजमेंट को यह फ़िल्म पसंद नहीं आई। उनका मानना था कि ये फ़िल्म दून स्कूल की इमेज को नुकसान पहुंचा सकती है। यही वजह रही कि सेंसर ने इसे रिलीज ही नहीं होने दिया।
– अनफ्रीडम (2015)
यह फिल्म एक लेस्बियन जोड़े की लव स्टोरी पर बेस्ड है। इसमे दिखाया गया है कि कैसे उनका सामना आतंकवादियों से होता है और उसके बाद उनकी जिंदगी में क्या बदलाव आता है। इसमें कई भड़काऊ सेक्स सीन भी हैं, जिनकी वजह से सेंसर बोर्ड ने इसे रिलीज़ नहीं होने दिया।
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